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हमारे विषय में-


»एक व्यक्तित्व के तौर पर स्वयं से स्वयं के विषय में कुछ कहना बड़ा ही कठिन हैं, पर फिर भी जीवन में विचारों का विनिमय कम-से-कम उन आत्मीय व माननीय सज्जनों के साथ तो होना ही चहिये, जिनसे परस्पर हम अपने भावों और विचारों को साँझा करते हैं, क्योंकि बगैर सहज वैचारिकता के हम एक-दूसरे के प्रति संवेदनाओं से अभिप्रेरित नहीं हो सकते। 


»मेरे साहित्य से जुड़ने का प्रारंभिक अनुभव कुछ प्रेरणात्मक तो है, पर इससे कहीं अधिक चिंताजनक भी हैं। इसकी शरुआत एक आकस्मिक घटनाक्रम से होती हैं, जब मैं अपनी यात्राओं के दौरान जीवन के विविध प्रसंगों से परिचित हो रहा था। एक रोज़ ऐसी ही एक यात्रा के मध्यस्थ कुछ लोगों का एक समूह, जो मौजूदा औपचारिक व्यवस्था के कथित उपक्रम से उत्पीड़ित व उसके अनुभागियों के आशिष्टतापूर्ण निष्पादन के कारण गंभीर रूप से प्रभावित था। उन्होंने उस उपक्रम के संस्थागत प्रमुख के समक्ष अपनी सारी व्यथाओं को स्पष्ट किया तथा पर्याप्त नियोजित श्रम व समर्पण के बावजूद अपेक्षित परिणाम प्राप्त न होने के संबंध में निराशा व्यक्त की, पर निसंदेह उन्होंने इस घटना के लिए किसी दूसरे पक्ष के संलिप्तता पर आशंका नहीं जताई और स्वाभाविक रूप से उन्होंने इसके लिए अपने भाग्य को ही दोष दिया। यदि उन्होंने अपने इस परिस्थिति के लिए किसी संदिग्ध को आक्षेपित किया होता, तो निसंदेह उस अधिकारी ने इसे प्रायोजित घटना मानकर इसकी समीक्षा की होती, पर पीड़ित समूह स्वयं अपने विरुद्ध ऐसे किसी षड्यंत्र के प्रति अनभिज्ञ था। अभ्युक्त सामने थे, पर पारिस्थितिक 'चेतना' के अभाव के कारण बच गए और समाज के न्यायिक प्रतिबद्धता की आकांक्षाएं पथभ्रमित हुई। 


»मैं इस संबंध में उनके साथ हो रहे अन्याय को स्पष्ट रूप से देख सकता था और मुझे क्रोध भी बहुत आ-रहा था कि क्यों ये लोग नहीं देख पा रहे कि जो इनके शुभचिंतक होने का दावा कर रहे है, वही इनके ऐसी परिस्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। तब मुझे समझ आया कि यह गंभीर, किन्तु अत्यंत ही गूढ़ व सूक्ष्म विषय है, जिसके लिए अंतर्दृष्टि की जरूरत हैं और तभी मुझे यह विदित हुआ कि मैं कुछ लिपिबद्ध कर सकता हूं और अनुभवों को अभिव्यक्त करने का साहित्य सबसे उत्कृष्ट माध्यम हैं। जिस क्षण मुझे यह भ्रांति हुई उसी क्षण मैंने सुनिश्चित किया कि मैं धर्म, समाज, जीवन और राजनीति के अव्यक्त संदर्भों की अभिव्यक्ति करूँगा तथा उसकी प्रतिध्वनि बनूँगा। जीवन के विभिन्न कार्यक्षेत्रों में न्याय, समानता और सार्थकता की अभिव्यंजना तथा उस स्याह-पक्ष को लक्ष्य करना, जहाँ आदर्श जीवन के शत्रु विधमान हैं। मूलतः यही हमारा वैयक्तिक साहित्य-दर्शन हैं।


»अतः उस दिन की मेरी स्तब्धता ने सहसा एक तीक्ष्ण कटिबद्ध अभिव्यक्ति का रूप ले लिया और उसी क्षण मैं अपने व्यक्तित्व को उपलब्ध हुआ। क्योंकि आपका वास्तविक व्यक्तित्व आपके 'जीवन' की संभावनाओं में ही आवृत हैं। बस वहीँ से रौशनी में पल रहे अंधेरे कोने और तिमिरता में कैद उम्मीद के प्रभात की 'अन्वेषणा' शुरू हुई और एक स्वच्छ प्रभात की आश में नींद की गर्दिशों से लड़ बैठे। लड़ेंगे, तनिक टूटेंगे भी, पर फिर से खड़े हो जाएंगे, सत्य के दुर्गम रास्ते है जनाब, कभी भटके को दिखाएंगे, तो कभी खुद भटक जाएंगे। इस पर गुलज़ार साहब की एक नज़्म याद आती हैं- "आदमी बुलबुला है पानी का, पानी की बहती सतह पर, टूटता भी है डूबता भी है, फिर उभरता हैं, फिर से बहता हैं। वक्त की बहती हथेली पर, आदमी बुलबुला हैं पानी का"। 


»कुछ कह चुके कुछ कहना बाकी है, आएंगे कभी जद्दोजहद की नाफ़रमानी करके, आज कमबख्त मुहलत थोड़ी नाकाफ़ी हैं। साहित्य आपका दर्पण है, इससे जुड़ना और जोड़ना अपूर्व अनुभूति हैं। आप हमारे ई-मेल पते- shivjicontextfeed@gmail.com पर साहित्य तथा उसके प्रसंगों से संबद्ध अपने विचार हमे लिख सकते हैं या किसी तत्काल आपत्ति के संबंध में हमसे संपर्क कर सकते हैं।


विषयवस्तु

»अधोलिखित सूची में शृंखलित विविध विषयों व साहित्य विद्याओं में हम कहानियों तथा लेखों को अपने 'वेबसाईट' पर प्रसारित करते हैं, जिसकी अनुक्रमित सूची आप नीचे देख सकते हैं।


     •कहानियाँ व लघु कथाएं। 

     •निबंध व अनुसंधान लेख। 

     •कविताएं व गीत।

     •मूल्यांकन लेख। 

     •प्रहसन व आलोचनात्मक लेख। 

     •शैक्षणिक उक्तियाँ व निबंध। 

     •सामाजिक व धार्मिक संदर्भ।

     •चुटकुले व लतीफ़े।

     •दार्शनिक व वैज्ञानिक लेख। 

     •व्यक्तित्व विवेचना। 

     •उद्धरण व समीक्षा।

     •विषयात्मक निरूपण।

     •सारांश प्रवृति

     •राजनैतिक प्रलेखन  


»उक्त श्रेणियों के संदर्भ में अनुसंधान की तल्लीनता के कारण कुछ विषयों पर लेखों की अपर्याप्तता हो सकती हैं, परन्तु जितना त्वरित निष्पादन संभव हो, हम अपने कार्य-समूह के सहयोग से उल्लेखित विषयों पर लेखों के अभाव को दूर करने का प्रयास करेंगे। बस आपके प्रणय और सहचर्य की उत्प्रेक्षा हैं।                                                                                                    

                                                                                                                                  Greetings!