हिन्दी कहाँनियों के इस शृंखला में एक
और उत्तरोक्त Short Story in Hindi को संयोजित करते हुए हमें अत्यंत ही प्रसन्नता हो रही है तथा इस कार्य की उत्कृष्टता
ही हमारी प्रेरणा-स्त्रोत हैं। अतः Stories in Hind, Funny Story in Hindi, Hindi Stories, Hindi stories in short या Hindi Me Kahani हेतु हमारी
कथा-श्रेणी की पर्याप्त सूची का अनुसरण आपके विविध साहित्यिक अप्रचुरता के विरुद्ध
आपके संघर्षों का एक सर्वोत्तम प्रयास होगा।
प्रस्तावना
एक प्रतिभा-सम्पन्न कथाकार या
साहित्यकार अपने साहित्यिक प्रयासों से सुदूर भविष्य की बेहतर कामनाओं हेतु
कल्पित-जिज्ञासा विकसित करता है, जिससे वर्तमान जन-समुदाय के व्यवहारिक चेतना में
एक प्रगाढ़ता आती हैं और वह परिपक्व सामाजिक निर्णयात्मकता में अपनी सशक्त भूमिका
दर्ज करता हैं। किसी वस्तु अथवा तथ्य की परिकल्पना वह प्रारंभिक अनिवार्यता हैं,
जो किसी विचार से संबंधित भौतिक वास्तविकताओं को आकार देती हैं।
किसी विषय के संबंध में कुछ उद्घाटित
करने से पूर्व, उस विषय की प्रसांगिकताओं और देश तथा समाज के साथ उसके संबंधों को
प्रतिबिंबित करना ही संवेदनशील साहित्यिक-निष्ठा हैं। एक रचनाकार जो भी लिखता या
अभिव्यक्त करता है, उसे उन सभी चीजों से ऊपर होना चहिए। शायद तभी वह अपनी ‘निष्पक्षता’
को जीवित रखने में सफल सिद्ध हो सकेगा, अन्यथा उसके सारे प्रयास आक्षेप की ‘अपकृष्टता’
से आक्रांत होंगे और वह जीवन-पर्यत कभी उस शिखर को स्पर्श नहीं कर सकता, जो एक
साहित्यकार के चरम-उपलब्धि को परिलक्षित करती हैं। अतः एक लेखक के रूप में आपकी ‘निष्पक्षता’
ही आपके कृति को सजीव, निर्णायक व नियमित रखती हैं।
संभावित लेखकों की दायित्व और चुनौतियाँ
वर्तमान लेखकों के गुणात्मक नहीं होती, क्योंकि भौतिक समस्याओं की प्रकृति रूढ़
होती हैं और बस उसके रूप बदलते रहते हैं। समस्याएं बाकी और सारी चीजों की ही तरह
पारंपरिक होती है और आप कुछ नया नहीं लिख रहे होते है, बल्कि उन्हीं जटिलताओं कों
आप एक भिन्न तरीके से युगांतरित करते हैं। अब यहाँ किसी का यह सोचना स्वाभाविक है
कि फिर समाज को साहित्य या फिर ऐसे किसी प्रवृति की आखिर जरूरत ही क्या हैं? फिर
क्यों हम किसी नवीन साहित्यिक शैली का अभिवादन करे, जब समाज में समस्याएं न तो
परिवर्तित होती है, नाहीं खत्म होती हैं?
वस्तुतः समस्याएं खत्म नहीं होती,
क्योंकि यह नए-नए रूपों में उद्धृत होकर तत्कालिक समाज की क्रियाशीलता को बाधित
करती हैं। अतः समस्याओं के इन नए रूपों की प्रभावशीलता और गहनता को चिन्हित करना
तथा उसे नवविधि द्वारा समसामयिक ‘चेतना’ में रेखांकित करना, जिससे समकालीन समाज को
उस समस्या के विरुद्ध एक नयी ‘चेतना’ व दृष्टि सुलभ हो सके, हमें जरूरत होती एक
नवीन साहित्यिक-प्रवृति की। अतः यही समकालीन साहित्य का पूर्ण महत्व हैं।
रचनात्मक अभिव्यक्ति के इस पहल के बीच हमारी
अन्य ‘शाब्दिक’ व्याख्याओं का उद्देश्य केवल कुछ और पृष्ठों को संयोजित करना नहीं
है, बल्कि काल्पनिक-प्रतिष्ठा तथा उसके मर्मज्ञता
का उसकी असीमताओं के साथ ‘समन्वयन’ हो सके और हम कल्पनाओं के इस अंतहीन-यात्रा में
अपने विचारों की गतिशीलता को विस्मृत न कर दें। हमारे लिए किसी भी कथा-कहानियों के
उद्वरण से पूर्व ‘प्रस्तावना’ का एक भिन्न महत्व है, जिससे हम साहित्य के
आधिकारिक-संरचना, विषयवस्तु तथा उसकी गंभीरता को परिभाषित करने का प्रयास करते
हैं।
कहानी के संदर्भ में
इस कहानी के सभी पात्र, तथ्य, नाम एवं
घटनाएं पूर्णतः काल्पनिक व आकस्मिक है तथा इसका उद्देश्य किसी धर्म, समुदाय, जाति
या संस्था को ठेस पहुँचा कर, सामाजिक असौहार्द की स्थिति प्रकट करना नहीं हैं। इस
कहानी में उल्लेखित पात्रों के नाम व घटनाओं का किसी निश्चित वास्तविकताओं के साथ
समानता संयोग मात्र हैं।
तक़रीर:- प्रस्तुत ‘कहानी’ एक सारहीन, अतार्किक तथा अबौद्धिक
‘वक्तव्य’ पर सार्वजनिक अनुमोदन की गंभीरता को रेखांकित करती हैं तथा ऐसे भ्रामकता
के विरुद्ध हमें सामूहिक जागरुकता के प्रयासों के लिए प्रतिबद्ध होने की प्रेरणा
देती हैं। किसप्रकार एक धर्मगुरु अपने निरर्थक कथनों से जनसमुदाय के अबोध-जिज्ञासा
की निर्बलताओं का भ्रांत लाभ उठाता है तथा
अपने कुकृत्यों को बेमेल धार्मिक तर्कों की आड़ में आवृत करने का संभव प्रयास करता
हैं। कुछ लोग नीति या किसी अलौकिक अनहोनी का भय दिखाकर अपनी तथाकथित पारलौकिक
शक्ति का स्वांग रचाते है तथा लोगों को मूर्ख बनाकर अपने निजी हितों की पूर्ति
हेतु एक स्थायी-व्यवस्था सुनिश्चित करते हैं।
तक़रीर
हजारों लोगों की मौजूदगी में पिछले दो
घंटों से धार्मिक जलसे को खिताबत कर रहे मौलाना मंसूर ने पाँचवी दफ़ा पानी पीने के बाद
अपनी ‘तक़रीर’ को आगे बढ़ाते
हुए कहा-
“बेपर्दा.. बेपर्दा.. बेपर्दा! चारों तरफ़ बेपर्दा ही बेपर्दा। शर्मिंदगी तो जैसे अब बची ही
नहीं। अगर इसे ठीक नहीं किया गया तो बस कयामत आने ही वाला हैं। धरती पर जलजला आ
जाएगा, ये पहाड़ हवा में उड़ाने लगेंगे, सारे पेड़ जमीन में धस जाएंगे, आसमान में
जगह-जगह सुराख हो जाएगा और उसी सुराख से आग की वर्षा होगी। ये चाँद और सूरज आसमां
से गायब हो जाएंगे। ये सितारे जो दिखाई दे
रहे हैं, मिसाईल बनकर हमारे ऊपर गिरने लगेंगे। समुद्र का सारा पानी बह जाएगा। किसी
को भी जन्नत नसीब न होगी। बहत्तर हूरें तो बस ख्वाबों में ही रह जायेंगी। सबके सब
जहन्नुम में जाएंगे।“
मौलाना मंसूर ‘तक़रीर’ के लहजे और वाक्य-प्रवाह
को तब्दील करते हुए गणनात्मक स्वर में बोले। “आज बेशर्मी का आलम ये है कि आजकल की
खातूने अपना जिस्म दिखाने और उसकी नुमाईश करने में लगी हैं। थोड़ी-सी बीमार क्या
हुई कि डॉक्टर को अपना जिस्म दिखाने लगती हैं? फैशन-आर्टिस्ट से अपना चेहरा, हाथ-पाँव
और पता नहीं क्या-क्या मसाज करवाती हैं?
मौलाना मंसूर समर्थित दृष्टांत देते
हुए बोले। “फिल्मों में नंगा होना तो अब आम बात हो गया हैं। कुछ खातूने तो इतने
छोटे और टाईट कपड़े पहनकर निकल रही है कि किसी का भी मन बहक जाए। ये स्कूल जाते
वक्त युवकों को देखकर गलत ईशारे करती हैं। ये देवर के साथ हाथ में हाथ डालकर बात
करती हैं। कुछ तो इतनी बेशर्म है कि शौहर का नाम पूछो तो देवर का बताती हैं। ऐसी
खातूनों का तो निकाह भी हराम हैं। अगर ऐसी खातूनों को जल्द रोका नहीं गया तो अब
कयामत के दिन दूर नहीं और दूर नहीं वह दिन भी जब पूरी कायनात में तबाही के मंजर
होंगे।
मौलाना मंसूर समाधान प्रस्तुत करते हुए
बोले। “अगर कयामत के इन बेरहम नतीजों से निजाद पानी है, तो खातूनों को केवल मजहबी
तालिम देना होगा। इनको बुर्का पहनाकर लिबाजी तहजीब के अनुसार चाहरदीवारी में कैद
करना होगा। अगर ऐसा हुआ तभी हमलोग इस कायनात को कयामत से बचा पाएंगे।“ तभी कुछ
युवक आपस में कानाफूसी करने लगते हैं।
“अरे! तुम लोग शोरगुल क्यों कर रहे हो?
अगर किसी को कुछ पूछना है तो ऊपर आ जाओ और माईक लेकर सबके सामने पूँछो।“ मौलाना
मंसूर ने कहा।
एक युवक मंच पर आता है और अपने हाथों
में माईक लेता हैं।
“अरे! तुम्हारा नाम क्या हैं?” मौलाना
मंसूर ने उस युवक से पूँछा।
“जमील।“ उस युवक ने जबाब दिया।
“मुसलमान हो?”
“जी।“
“पूँछो, क्या पूछना हैं?”
युवक गंभीर मुद्रा में अत्यंत ही सहजता
से अपने प्रश्नों को आलेखात्मक स्वर में अभिव्यक्त करते हुए बोला। “मौलाना साहब! आपने
अभी यह कहा कि शौहर का गलत नाम बताने पर निकाह हराम-[खत्म] हो जाता हैं।“
“हाँ, हो जाता हैं।“ मौलना मंसूर ने
तुरंत ही जबाब दिया।
पुनः युवक विवरणात्मक अंदाज में बोला।
“पिछले महीने आपकी बेगम-[पत्नी] मायके गयी थी। उस समय वहाँ विधानसभा का चुनाव हो
रहा था। लोगों में इस बात की चर्चा है कि उस चुनाव में आपकी बेगम ने किसी दूसरे
खातून-[औरत] के नाम पर वोट किया था और पकड़े जाने पर शौहर का नाम भी गलत बताया था।“
‘मौलाना मंसूर’ ने स्पष्टीकरण देते हुए
कहा। “मेरी पत्नी एक मुस्लिम उम्मीदवार को वोट करने गयी थी। चूंकि जो सामने वाला
उम्मीदवार था, वह काफ़िर था। अतः मेरी पत्नी में उसे चुनाव में हराने लिए वैसा
किया। वैसी हालत में शौहर का गलत नाम बताना भी जायज हैं।“
युवक के पास विवरण और सवालों की एक
लम्बी फ़ेहरिस्त थी। युवक गृहकार्य के निष्पादन की निपुणता में पूरी तरह सुसंस्कृत
था। वह प्रश्न को थोड़ा और संवेदनशील बनाते हुए बोला।
“आपकी बेटी ‘फ़रजाना’ एक न्यूड तस्वीर
शेयर की हैं। वह तस्वीर ‘कश्मीर’ के डल-झील का हैं। क्या वह भी जायज हैं?”
“अरे भाई! मेरी बेटी ‘फ़रजाना’ का मेकअप
आर्टिस्ट और फोटोग्राफर, दोनों मुसलमान हैं और जनाब-ए-तबीयत के दुश्मन आपको
इत्तिला कर दें कि इसीलिए; यह भी जायज हैं।“
युवक कुछ देर मौलाना मंसूर की तरफ़ स्थिर-दृष्टि
से देखता रहा। उसे जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ। अतः वह पुनः उसी लहजे में बोला। “आपके
बेटी का आपके ही ड्राइवर के साथ अंतरंग विडिओ वाइरल हुआ हैं, क्या वह भी….?”
मौलाना मंसूर के पास इस प्रश्न के संबंध में कोई अनुकूल तर्क न था और वह आगबबूला होते हुए बोले। “मारों! इस बेहूदे को, यह मुसलमान नहीं किसी काफ़िर की औलाद हैं। मैं तो शुरू में ही ये समझ गया था कि यह मुसलमान नहीं हैं। इसे ‘इस्लाम’ से बेदखल किया जाय।“ इतना कहते हुए मौलाना मंसूर अपना माईक पटक देते है और तेजी से चलते हुए सभा से दूर निकल जाते हैं। मौलाना मंसूर दूर क्षितिज पर एक विलुप्त होते बिन्दु की तरह दिखाई देते हुए आँखों से ओझल हो जाते हैं। Read a lot of Hindi Literatures, Hindi Stories and Hindi Kahani by Shivjicontext.
सर्वाधिकार संरक्षण :- इस कहानी के सम्पूर्ण सर्वाधिकार लेखक के पास सुरक्षित है।
अतः इसके किसी भी अंश का मुद्रण, प्रतिछवि या प्रकाशन वर्जित हैं। ऐसा करना
वैधानिक उल्लंघन है, जिसकी अवज्ञा दंडकारक हो सकती हैं। किसी भी प्रकार के न्यायिक
गतिरोध की विचारणीयता राज्य उच्च ‘न्यायालय’ में होगी।
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