जीवन पर मौलिक हिन्दी कविताएं | Unique Poems about life Hindi |

जीवन पर मौलिक हिन्दी कविताएं | Unique Poems about life Hindi |

 



हिंदी में ज़िंदगी पर कविताएं, Poem in Hindi about life, Hindi poems for life, Life’s poem in hindi, poem on life’s virtue and reality in hindi, Hindi Me Kavita तथा जीवन-मूल्य के गहनतम् प्रसंगों पर संवेदनात्मक कविताओं की प्रसरण के इस प्रयास में हम एकबार फिर आपके प्रेम और सहानुभूति हेतु आशाप्रतिक्ष हैं तथा हम अपने सीमित शब्दों द्वारा आपकी विराट-भावना और साहित्य-प्रेम के उस प्रांगण में शरणार्थी बनना चाहते है, ताकि हम आपके साहित्य-सेवा में सदैव तत्पर रह सकें। Read More.... Kavita in Hindi & Hindi Poems by Shivjicontext.

 

 

प्रस्तावना

 

 

जब भी आप ‘जीवन’ के संबंध में कुछ विचार करते है और यदि उन विचारों में गंभीरता तथा गहनता होती है, तो उस अंतराल में आपका पूरा भौतिक-अस्तित्व शून्य-सा जान पड़ता हैं। ऐसा इसलिए; क्योंकि ‘जीवन’ का अर्थ केवल आपसे नहीं है, बल्कि सृष्टि की सम्पूर्ण समग्रता के अभिप्राय का नाम ही ‘जीवन’ हैं। इसके अतिरिक्त आपका अस्तित्व तो केवल अहंकार-(“मन और समय यानि विचारों के समग्र रूप व उसके विभिन्न परत”) की वजह से हैं।

 

 

‘जीवन’ के संदर्भित विचारात्मकता में जीवन की एकमुश्त परिभाषा क्या होगी? क्या ‘जीवन’ सिर्फ एक उत्कंठा या लालसा हैं, जो सदैव अपने भौतिक महत्वाकांक्षाओं की प्राप्ति के मार्ग की ओर ही अग्रसर व तत्पर हैं? या फिर इसका कोई परम-उद्देश्य हैं? आप शायद सोचते हो कि मेरे पास इन प्रश्नों के उत्तर हैं, मेरे पास उत्तर नहीं है, बस ये कहने का कारण है कि ‘जीवन’ महज अभिलाषा नहीं है, बल्कि यह एक ‘अन्वेषण’ हैं।

 

 

‘जीवन’ के प्रश्नों का किसी के पास कोई उत्तर नहीं, क्योंकि जीवन एक मार्गरहित भूमि हैं और आप एक ऐसे पथिक है, जिसके पास अनुश्रुतियों के अतिरिक्त अन्य कोई रूपरेखा नहीं हैं। यदि जीवन एक ‘अन्वेषण’ हैं तो आपको इस यात्रा में अकेले ही होना चहिए, क्योंकि आपको आपसे बेहतर शायद और कोई नहीं जानता।

 

 

 

हम किसी एक परिभाषा द्वारा ‘जीवन’ की व्यापकता तथा उसकी मार्मिकता को लिपिबद्ध तो नहीं कर सकते, क्योंकि बगैर किसी अन्वेषित ‘चेतना’ के जीवन की वास्तविकताओं से साक्षात्कार संभव नहीं। अतः हम Poem In Hindi, Hindi Poems on Life, Poem in Hindi on Life तथा जीवन पर कविताओं के अपने इस ‘वृतखण्ड’ में जीवन की कुछ मौलिक संवेदनाओं को शब्दों में लयबद्ध करने का प्रयास करेंगे।   

 

 

‘कविताएं’ जीवन को समझने की एक आरंभिक अधियाचना हो सकती है, क्योंकि शब्दों के अंतराल में कुछ अद्वितीय लय बनते है और वह आपके हृदय-तरंगों में एक ध्वनिरहित ‘संगीत’ संवाहित करते हैं। अतः अव्यक्त भावनाओं को केवल ‘संगीत’ ही प्रकट कर सकता है, क्योंकि इसमें कोई धारणा, मत-सिद्धांत या द्वेत भाव नहीं होता।संगीत’ एक सर्वव्यापी प्रवाह है, जो सम्पूर्ण विश्व में एक-समान प्रतिध्वनित होती हैं।

 

 

कविताओं के परिणत अभिप्राय के मध्यस्त कुछ मार्मिक व अर्थपूर्ण संगीत के तराने होते है, जिन्हें एक ‘संगीत’ प्रेमी ग्रहण करता हैं और शायद इसीलिए कविताओं के अस्तित्व का एक भिन्न महत्व हैं। अतः Hindi life poetry, Hindi poem about life, Poems for life in hindi, Zindagi Ki Kavita, Poem on life in hindi तथा जीवन पर साहित्यिक कविता के इस शृंखला में जीवन से संबंधित कुछ कविताएं आपको समर्पित हैं।

 

 

 

 

कविताएं- (Hindi Poems On Life)

 


पूर्वाग्रह-:  प्रस्तुत ‘कविता’ जीवन के पूर्व पदध्वनी तथा कुछ सार्थक निश्चयात्मकता के आग्रह पर विचार करती है और जीवन से जुड़े विभिन्न तत्वों-(निर्णय व आयाम) को उपयुक्त अनुक्रम में शृंखलित करने का प्रयास करती हैं। मनुष्य निश्चित ही अपने साध्य की परिपूर्णता को उपलब्ध हो सकता है, पर इससे पहले उसे कुछ निश्चित व तत्काल अनिवार्यताओं का ध्यान रखना होगा, क्योंकि जीवन का आयाम बहुत ही विशाल और वृहद है, जहाँ आपके किसी भी त्रुटि के लिए कोई स्थान नहीं। अतः लक्ष्य की साधना करे, पर अपने फ़ैसलों की आवृति पर दृष्टि रखे, क्योंकि मनुष्य कुछ बनने से पूर्व और बहुत कुछ बनता हैं। यह ‘कविता’ आपको इस निरुत्साहक सत्य के प्रति एक नवीन आशा प्रदान करती हैं।

 

 

 

 

पूर्वाग्रह-(Poems On Life In Hindi)

 

“बिन चले ही गिर पड़ा, उठ फिर

लड़खड़ाना अभी बाकी हैं।

हारकर थक गया हूं मैं, पर खुद

से खुद को जीतना अभी

बाकी हैं। बिन चले ही गिर पड़ा,

उठ फिर लड़खड़ाना अभी

बाकी हैं।“

 

 

“बिन रोएं ही हँस पड़ा, दीन हो दुखः

झेलना अभी बाकी है। सुख के

आश्रय में खुश्क हो गया हूं मैं, पर

लोहे-सा तप निकलना अभी

बाकी हैं। बिन चले ही गिर पड़ा, उठ

लड़खड़ाना अभी बाकी हैं।“

 

 

“बिन जले ही दुष्ज्योत हो रहा, जल

राख बन जाना अभी बाकी हैं।

वसंत के शीतल रज-पावस से मंद

पड़ गया हूं मैं, पर पवन के एक

झोंक से अँधेरे को मिटा देना अभी

बाकी हैं। बिन चले ही गिर पड़ा, उठ

फिर लड़खड़ाना अभी बाकी हैं।“

 

 

 

सांत्वना-:  यह ‘कविता’ जीवन के प्रति प्रेमपूर्ण निष्ठा तथा जीवन का सहर्ष अभिवादन करने की कला का एक संवेदनात्मक मर्म प्रस्तुत करती हैं। जिसमें जीवन के कष्टों, चुनौतीओं, यातनाओं तथा संघर्षों को हर्षपूर्ण स्वीकार करने का विनम्र आग्रह हैं, क्योंकि यदि सुख जीवन का सत्य है, तो दुखः भी जीवन की वास्तविकता से भिन्न नहीं हैं।

 

 

 

सांत्वना-(Life’s Poem In Hindi)

 

“अश्रु की वो शक्ति है मुझमें, बूँद की

वो प्यास। विराट-सा वो हृदय

है मुझमें, असंख्य विफलताओं से

निर्मित उस शिखर का एहसास।

अश्रु की वो शक्ति है मुझमें, बूँद की

वो प्यास।”

 

 

 

“अनगिनत महालयओं के द्वार के द्रुत

तिरस्कार का मुझे आभाष है,

विपरीत प्रस्थान कर हतशाओं पर व्यंग

करने का मुझे अभ्यास हैं।

पर्वत से टकराने वाले तत्व स्वयं वीभत्स

वेदनाओं से ग्रसित हो जाते है,

स्पर्श-परिवर्त हो उसके सम्पन्न रुषता

से, एक नव रंग ले आते हैं। श्वेत-अब्द

की वो सुदृढ़ता है मुझमें, निशा-अब्द की

वो साख। अश्रु की वो शक्ति है मुझमें,

बूँद की वो प्यास।“

 

 


पथिक-:  प्रस्तुत ‘कविता’ जीवन के अप्रत्याशित यात्रा में मुसफ़रीरों को एक प्रतीकात्मक निश्चय से अवगत कराती है तथा जीवन की यात्रा में संकल्प, दृढ़ता तथा निश्चय की प्रेरणा देती हैं। जीवन के प्रतिबद्धता पर निरापवाद रूप से गतिमान रहना ही जीवन की मूल प्रवृति हैं, अन्यथा आपको ज़िंदगी अपने किसी सुदूर अतीत में निस्तेजित कर छोड़ देगी और आप जीवन की अपनी यात्रा में बहुत पीछे रह जाएंगे। जीवन के साथ चलना ही जीवन की अनिवार्यता हैं, क्योंकि जीवन एक सतत प्रवाह हैं।

 

 

 

 

पथिक-(Hindi Me Zindagi Par Kavita)

 

 

“रुकना अब तुझे स्तंभिक-सा जान

पड़ता हैं। पद करे अगर तूँ

खेदरहित-सा, तब तूँ अपने वेग को

जान सकता हैं। तेरे पीछे

गए पदचिह्नों में गड्ढे जो पड़े हैं, उसे

रेणुका अपने ऋतु से तर्क-

समतल कर देगी, तूँ  इसकी वृथा

मत कर। ऐ! पथिक मुसाफ़िर

हैं तूँ प्रस्थान कर।“

 

 

“तेरे प्रस्थान का समय अंतिम कगार

पर हैं। उन वाटिकाओं से रूठे

वृक्षों को देख, जिसके विछोह विलाप

से समस्त वन वृक्ष नग्न अवाक्

से खड़े हैं। वह पत्तझड़ जो कभी विराट

वृक्षों के विशाल रूपी आकृतियों

के अनमोल सदस्य हुआ करते थे, आज

वह अपने ही पगस्थल में अधीन

दिखाई पड़ते हैं। अतएव्, तूँ अपने पतन

हुए भूतपूर्व हानियों का स्मरण

मतकर। ऐ! पथिक मुसाफ़िर है तूँ

प्रस्थान कर।“

 

 

 

आग्रह-स्वर:-  इस ‘शाब्दिक’ सामग्री की सभी मूल प्रतियाँ लेखक के पास मौजूद है। अतः विरूपण द्वारा इसके किसी भी अंश का कुशलतापूर्वक प्रयोग करना अथवा इसे विकृत करने का प्रयास करना साहित्यिक-दस्युता हैं, जिससे वैधानिक गतिरोध उत्पन्न हो सकता हैं। अतएव, रचनात्मक प्रतिपादन व उसके निजता का सम्मान करें। किसी भी प्रकार की न्यायिक संवाद राज्य उच्च ‘न्यायालय’ में होगी। “धन्यबाद!”

        


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