Employment in Primary Sector Of Indian Economy Hindi-Rojgar in Hindi

Employment in Primary Sector Of Indian Economy Hindi-Rojgar in Hindi





भारतीय अर्थव्यवस्था Indian Economy Hindi- के प्राथमिक Primary Sector Hindi- क्षेत्रों में रोजगार Employment in Hindi- स्थिरता का मूल्यांकन व पुनर्संयोजन एक प्रमुख विषय है, जिस तरफ राजनैतिक प्रतिनिधियों का ध्यान केंद्रित करना ही इस संक्षिप्त आर्थिक व्याख्या का उद्देश्य हैं। किस प्रकार कृषि एवं सहबद्ध क्षेत्रों में रोजगार स्थिरता को सुनिश्चित कर हम अपनी अर्थव्यवस्था को स्वत-स्फूर्त बना सकते है? ताकि हम आर्थिक प्रोन्नति के अपने इस दौड़ हेतु अतिरिक्त समय व ऊर्जा प्राप्त कर सकें। अतः आज हम इस विषय पर चर्चा के साथ-साथ इस निबंध-पद्धति के प्रथम व आरंभिक शैली से भी परिचित होंगे। Read More.... Hindi Articles on Economy, Social Lekh in Hindi, Political Nibandh in Hindi & Hindi essay by Shivjicontext. 
   






विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के आँकड़े


            




       *भारतीय अर्थव्यवस्था के मुख्य गतिविधियों के केंद्रों में रोजगार सृजन के आँकड़े कुछ क्षेत्रों मे धनात्मक तो किंन्ही क्षेत्रों में ऋणात्मक रूप से सक्रिय रहे। भारत के तीन मुख्य आर्थिक क्षेत्र हैं।
 
                  1. कृषि क्षेत्र- कृषि और सहबद्ध। 
                  2. द्वितीयक क्षेत्र- उद्योग, खनन एवं विनिर्माण। 
                  3. तृतीयक क्षेत्र या सेवाएं- व्यापार, होटल, परिवहन आदि। 

  



  प्राथमिक क्षेत्र:- *वर्ष 1999-2000 के मध्यस्त प्राथमिक क्षेत्रों मे रोजगार 59.9 प्रतिशत था, जो कि 2004-2005 में घटकर 58.5 प्रतिशत ही रह गया। अतः वर्ष 2000-2005 के बीच कृषि व सहबद्ध क्षेत्रों मे रोजगार 1.4 प्रतिशत के हिसाब से कम हुआ। पुनः 2004-05 के पश्चात प्राथमिक क्षेत्रों मे रोजगार का आँकड़ा 58.5 प्रतिशत से घटकर 2011-12 में 48.9 प्रतिशत पर आ पहुँचा। अर्थात वर्ष 2000-2012 के बीच कृषि क्षेत्रों मे रोजगार का 11 प्रतिशत के दर से हास्र हुआ।







  द्वितीयक क्षेत्र:- *वर्ष 1999-2000 में द्वितीयक क्षेत्रों मे रोजगार 1.8 प्रतिशत के वृद्धि दर के साथ 16.4% से बढ़कर, वर्ष 2004-05 में 18.2 प्रतिशत पर दर्ज हुआ। तथा 2011-12 मे यह आँकड़ा 24.3 प्रतिशत के वृद्धि दर तक पहुँच गया। अर्थात उद्योग या विनिर्माण आदि क्षेत्रों मे वर्ष 2000-12 के बीच रोजगार 7.9 प्रतिशत के हिसाब से बढ़ा हैं।






  तृतीयक क्षेत्र:- *अब बात करते हैं तृतीयक क्षेत्र-(सेवाओं) की। तो वर्ष 1999-2000 के बीच तृतीयक क्षेत्रों मे रोजगार 23.7 फीसद था, जो 2004-05 में घटकर 23.3 फीसद पर आ गया। मतलब वर्ष 2000-05 के मध्यस्त तृतीयक क्षेत्रों में रोजगार 0.4 प्रतिशत के दर से घटा। पुनः तृतीयक क्षेत्रों में रोजगार 26.9 प्रतिशत यानि 3.6 प्रतिशत के वृद्धि दर से बढ़ा हैं। मूलतः तृतीयक क्षेत्रों में वर्ष 2000-12 के बीच रोजगार 4% के हिसाब से बढ़ा हैं। 







  विश्लेषण:- *भारतीय अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों के योगदान की यदि गणना की जाय तो आज भी प्राथमिक या कृषि क्षेत्र की महत्ता तथा योगदान सर्वाधिक हैं। पर इसकी सक्रियता तथा भूमिकाओं की गतिशीलता में कमी आयी हैं। इसके अतिरिक्त GDP में बढ़ोत्तरी के संकेतों को तृतीयक व द्वितीयक क्षेत्र अधिक बेहतरी से दर्शा रहे है। लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था में रोजगार की औसत भागीदारी आज भी प्राथमिक क्षेत्रों मे अधिक हैं। क्योंकि प्राथमिक क्षेत्र एक बुनयादी आर्थिक क्षेत्र है जहाँ से कोई भी व्यक्ति अपने आरंभिक आजीविका के केंद्रों को विकसित करता हैं। निश्चित ही, प्राथमिक क्षेत्र में रोजगार तथा उत्पादन के आँकड़े घटे है, पर इस राष्ट्र के एक बड़े हिस्से की आजीविका प्राथमिक क्षेत्रों पर ही टिकी है। 






                   »यदि हम द्वितीयक व तृतीयक यानि उद्योग और सेवाओं की बात करे तो वह जिस प्रकार के रोजगार सृजित कर रहीं है, वह तकनीकी ज्ञान तथा कौशलयुक्त उद्यमशीलता को दर्शाती हैं। इस राष्ट्र का वह वर्ग जो कौशलपूर्ण तथा तकनीकी प्रशिक्षणों से युक्त है, ऐसे किसी रोजगार के अवसर से स्वयं को संयोजित कर सकता है, क्योंकि उद्योग व सेवाओं मे रोजगार प्राप्त करना, किसी विशेष योग्यता, कौशल तथा प्रशिक्षणों की माँग करता हैं। लेकिन इस देश में एक तब्का ऐसा भी हैं जिसके पास न कोई कौशल तथा नाही कोई खास प्रशिक्षण हैं। अतः ऐसे वर्गों की सामान्य आजीविका प्राथमिक क्षेत्रों के गतिशीलता पर ही निर्भर हैं, क्योंकि ऐसे कार्यों का संचालन घरेलू या अनुकरणीय अनुभवों के आधार पर तय की जा सकती हैं तथा अंतर्राज्यीय रोजगार सृजित किये जा सकते है, लिहाजा लोग अपने सीमाओं से बहुत दूर जाकर आजीविका तलाशने को बाध्य न हो। निश्चित ही, हमे इस हेतु प्रबुद्ध सामाजिक सुरक्षा का प्रावधान सुनिश्चित करना होगा, ताकि असंगठित क्षेत्र की कुछ बाधक चुनौतीओं से हम मोर्चा ले सकें।

                                                     

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